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5 बड़ी बातें: सचिन पायलट का जातीय जनगणना पर बड़ा हमला:, बीजेपी की नीति पर सवाल, तेलंगाना मॉडल को बताया पारदर्शी

 परिचय: जातीय जनगणना की मांग और राजनीतिक गरमाहट

सचिन पायलट जातीय जनगणना बयान में बीजेपी पर हमला बोलते हुए तेलंगाना सरकार के पारदर्शी सर्वे मॉडल की तारीफ की। उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना सामाजिक न्याय के लिए बेहद ज़रूरी है।

भारत में जातीय जनगणना एक संवेदनशील लेकिन अत्यंत आवश्यक मुद्दा बन चुका है। जहां एक ओर विपक्षी दल इसे सामाजिक न्याय और समानता से जोड़ते हैं, वहीं केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार इस पर स्पष्ट रुख नहीं दिखा पाई है। इसी मुद्दे को लेकर राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है।

सचिन पायलट ने तेलंगाना की कांग्रेस सरकार के पारदर्शी जातीय सर्वेक्षण मॉडल की सराहना करते हुए बीजेपी पर इस प्रक्रिया को जानबूझकर टालने का आरोप लगाया।

सचिन


जातीय जनगणना क्यों है जरूरी?

जातीय जनगणना का मुख्य उद्देश्य यह जानना होता है कि विभिन्न जातियों की जनसंख्या कितनी है, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति क्या है, और किन वर्गों को सरकारी योजनाओं का लाभ वास्तव में मिल रहा है।

वर्तमान समस्या

आजादी के बाद भारत में एक बार भी संपूर्ण जातीय जनगणना नहीं हुई है। पिछली बार 1931 में जातीय आंकड़े प्रकाशित हुए थे। 2011 में समाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) हुई थी, लेकिन उसके आंकड़े भी अधूरे और अपूर्ण रहे।

सचिन पायलट का मानना है कि जब तक पूरी जातीय स्थिति सामने नहीं आती, तब तक समाज में समान अवसर और संसाधनों का वितरण संभव नहीं है।


सचिन पायलट का बयान: केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया

“तेलंगाना से प्रेरणा लें प्रधानमंत्री मोदी”

सचिन पायलट ने कहा:

“तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने के कुछ ही महीनों के भीतर जातीय सर्वेक्षण को लागू कर दिया। पारदर्शिता, निष्पक्षता और ईमानदारी से किए गए इस सर्वे ने यह साबित कर दिया कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, तो यह कार्य असंभव नहीं।”

“बीजेपी की चुप्पी खतरनाक है”

पायलट ने सवाल उठाया कि अगर बीजेपी की सरकार वाकई सामाजिक न्याय में विश्वास करती है, तो फिर वह जातीय जनगणना को लेकर चुप क्यों है? उन्होंने कहा कि:

“अगर सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास वास्तव में नीति का हिस्सा है, तो फिर जातीय जनगणना को लेकर झिझक क्यों?”


तेलंगाना मॉडल: पारदर्शिता और त्वरित कार्यवाही का उदाहरण

तेलंगाना में क्या हुआ?

2024 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद, मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने प्राथमिकता से जातीय सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू की। कुछ ही महीनों में राज्य भर में सर्वेक्षण पूरा कर, सभी आंकड़े सार्वजनिक कर दिए गए।

सर्वेक्षण में बताया गया कि राज्य की आबादी में किस जाति का कितना प्रतिशत है, उनकी औसत आमदनी, शिक्षा स्तर, बेरोजगारी दर और सरकारी योजनाओं से प्राप्त लाभ आदि जानकारी भी साझा की गई।

पायलट की प्रतिक्रिया

सचिन पायलट ने इसे “सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम” बताया। उन्होंने कहा कि यही मॉडल पूरे देश में अपनाया जाना चाहिए और यह कार्य केवल बयानबाजी से नहीं, व्यवहारिक इच्छाशक्ति से ही संभव है।


राजस्थान और जातीय समीकरण

राजस्थान में जातीय समीकरण बेहद जटिल हैं। यहाँ की राजनीति में जाट, गुर्जर, मीणा, ब्राह्मण, राजपूत और अनुसूचित जातियों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

पायलट का निजी अनुभव

सचिन पायलट स्वयं गुर्जर समुदाय से आते हैं और लंबे समय से इस बात की मांग कर रहे हैं कि जातीय जनगणना से संबंधित आंकड़े सार्वजनिक किए जाएं ताकि समाज में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व और संसाधनों का सही वितरण हो।

उन्होंने कहा:

“हमारी पार्टी की सोच है कि जब तक समाज के हर वर्ग को उसकी जनसंख्या के अनुसार भागीदारी नहीं दी जाती, तब तक समावेशी विकास संभव नहीं।”


कांग्रेस का वादा: सत्ता में आए तो जातीय जनगणना प्राथमिकता में

राजनीतिक दृष्टिकोण

कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में साफ किया है कि अगर पार्टी केंद्र की सत्ता में आती है, तो पहले 100 दिनों में जातीय जनगणना को पूरा कर, उसके आधार पर योजनाओं का पुनर्निर्धारण किया जाएगा।

पायलट का मत

सचिन पायलट ने कहा कि कांग्रेस का यह वादा सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि एक आर्थिक और सामाजिक आवश्यकता है। उन्होंने इसे संविधान में वर्णित समानता के अधिकार से जोड़ते हुए कहा:

“अगर हम समाज के कमजोर वर्गों को ऊपर लाना चाहते हैं, तो उनकी वास्तविक स्थिति जाननी ही पड़ेगी। और इसके लिए जातीय जनगणना आवश्यक है।”


बीजेपी की नीति पर सवाल

“जातीय आंकड़ों से डर क्यों?”

पायलट ने तंज कसते हुए पूछा कि अगर बीजेपी खुद को सभी वर्गों की हितैषी बताती है, तो फिर उसे जातीय आंकड़ों से डर क्यों लगता है?

उन्होंने कहा:

“आपकी योजनाएं कितनी प्रभावी हैं, यह जानने के लिए आपके पास आंकड़े होने चाहिए। लेकिन जब आंकड़े ही नहीं होंगे, तो योजनाएं कैसे बनेगीं? जातीय आंकड़े छुपाना, देश के साथ छल करना है।”


निष्कर्ष: सामाजिक न्याय के लिए आंकड़ों की पारदर्शिता आवश्यक

जातीय जनगणना का मुद्दा अब केवल एक प्रशासनिक कार्य नहीं, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्रांति की ओर एक कदम बन गया है। सचिन पायलट जैसे नेता लगातार इस मुद्दे को उठा रहे हैं ताकि देश में न्याय आधारित नीतियां बन सकें।

उनका यह बयान केवल सरकार की आलोचना नहीं, बल्कि पूरे देश को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम सच में सामाजिक समानता की ओर बढ़ रहे हैं, या फिर केवल राजनीतिक नारेबाज़ी में उलझे हुए हैं?