राजस्थान की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। Sachin Pilot के नेतृत्व में हो रहे छात्रसंघ चुनावों को लेकर आंदोलन के केंद्र में अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आ गए हैं। पायलट की इस मांग को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि उनका असली विरोध किसके खिलाफ है? इसी बीच कांग्रेस विधायक राजेंद्र बैरवा ने बड़ा बयान देते हुए कहा है:
“पायलट का आंदोलन किसके खिलाफ है? गहलोत खुद इसका जवाब दें कि छात्रसंघ चुनाव क्यों रोके गए।“
जयपुर में NSUI के बैनर तले हुए बड़े प्रदर्शन में Sachin Pilot on student union elections पर खुलकर बोले। उन्होंने स्पष्ट किया कि:
“छात्र राजनीति लोकतंत्र की पहली पाठशाला है। सरकार को यह तय करना होगा कि युवाओं को चुनावी प्रक्रिया से दूर क्यों रखा जा रहा है।”
यह बयान न केवल एक संगठनात्मक मांग थी, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी था – शायद सीधे सरकार और नेतृत्व की ओर।
Sachin Pilot vs Gehlot on student union elections की राजनीति तब और गरमा गई जब बैरवा ने मीडिया से कहा:
“पायलट ने लोकतंत्र और युवाओं की आवाज़ उठाई है। लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत को बताना चाहिए कि आखिर छात्रसंघ चुनाव क्यों नहीं हो पा रहे।”
बैरवा के इस बयान को कांग्रेस के अंदर चल रही अंतर्कलह के रूप में भी देखा जा रहा है।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि सचिन पायलट द्वारा उठाया गया मुद्दा छात्रसंघ चुनाव से आगे जाकर एक “राजनीतिक पोजिशनिंग” भी है।
Sachin Pilot vs Gehlot on student union elections अब एक व्यक्ति विशेष की लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे युवा वर्ग की आवाज बनती जा रही है।
सचिन पायलट लंबे समय से युवा राजनीति से जुड़े रहे हैं। NSUI को मजबूती देने में उनका बड़ा हाथ रहा है।
इसलिए जब वे कहते हैं कि “चुनाव हों, चाहे कोई भी जीते” – तो यह एक नेता का साहसिक वक्तव्य होता है, जो केवल जीत के लिए नहीं बल्कि प्रक्रिया के लिए लड़ रहा है।
अभी तक मुख्यमंत्री गहलोत की ओर से कोई औपचारिक बयान नहीं आया है, जिससे राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि क्या सरकार सच में छात्रसंघ चुनाव से बचना चाह रही है?
विपक्ष भी अब इस मुद्दे को हवा दे रहा है। छात्र संगठन सड़कों पर उतर रहे हैं। ऐसे में Sachin Pilot on student union elections का मुद्दा अब सिर्फ पार्टी की अंदरूनी राजनीति तक सीमित नहीं रहा।
Sachin Pilot vs Gehlot on student union elections अब एक गर्म राजनीतिक बहस का विषय बन चुका है। पायलट के आंदोलन को केवल युवा समर्थन नहीं बल्कि संगठनात्मक आधार भी मिल रहा है।
बैरवा जैसे नेताओं के बयान इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कांग्रेस के भीतर सवाल उठने लगे हैं — और अब सरकार को जवाब देना ही होगा।
क्या सचिन पायलट एक बार फिर युवा राजनीति के सहारे कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बना रहे हैं?
क्या छात्रसंघ चुनावों की मांग भविष्य की कोई बड़ी राजनीतिक भूमिका का संकेत है?
यह आने वाला समय बताएगा, लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट है कि पायलट पीछे हटने को तैयार नहीं हैं — और अब सवाल सीधे मुख्यमंत्री गहलोत से पूछे जा रहे हैं।