राजस्थान की राजनीति हमेशा से गुटबाज़ी और आंतरिक संघर्ष का गढ़ रही है। कांग्रेस पार्टी में भी लंबे समय से यह खींचतान देखने को मिलती रही है। एक ओर हैं अनुभवी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot), वहीं दूसरी ओर उनके धुर विरोधी और युवा नेता सचिन पायलट (Sachin Pilot)। दोनों के बीच का यह राजनीतिक संघर्ष अब एक नए मोड़ पर पहुंच चुका है, जहां Ashok Gehlot vs Harish Choudhary Politics चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा बन गई है।
इस पूरे विवाद के केंद्र में हैं हरीश चौधरी (Harish Choudhary), जिन्हें सचिन पायलट का सबसे करीबी और प्रदेश की जाट राजनीति का बड़ा चेहरा माना जाता है। गहलोत खेमे की कोशिश है कि हरीश चौधरी की राजनीतिक जमीन कमजोर कर दी जाए, ताकि अप्रत्यक्ष रूप से पायलट गुट पर दबाव बनाया जा सके।
Ashok Gehlot vs Harish Choudhary Politics को समझने के लिए हमें कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में झांकना होगा।
अशोक गहलोत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और संगठन पर उनकी पकड़ बेहद मजबूत है।
दूसरी ओर हरीश चौधरी लंबे समय से जाट समाज के बड़े नेता रहे हैं और उनकी गिनती सचिन पायलट के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में होती है।
गहलोत और पायलट के बीच का संघर्ष कांग्रेस आलाकमान तक कई बार पहुंच चुका है।
इस खींचतान का असर राजस्थान कांग्रेस की चुनावी रणनीति और संगठन पर भी साफ दिखता है।
यही कारण है कि Ashok Gehlot vs Harish Choudhary Politics आज कांग्रेस और प्रदेश की राजनीति में बड़ा मुद्दा बन चुका है।
राजस्थान की राजनीति में जाट समाज का वोट बैंक हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। अनुमान है कि प्रदेश की लगभग 20% आबादी जाट समुदाय से जुड़ी है।
हरीश चौधरी का इस समुदाय में गहरा प्रभाव है।
वे कई बार चुनाव जीत चुके हैं और मंत्री पद भी संभाल चुके हैं।
सचिन पायलट और हरीश चौधरी की जुगलबंदी ने कांग्रेस में युवाओं और जाट वोटरों के बीच खास पहचान बनाई।
इसी वजह से गहलोत गुट के लिए यह जरूरी हो गया है कि चौधरी की राजनीतिक ताकत को कम किया जाए। यही Ashok Gehlot vs Harish Choudhary Politics का मूल कारण है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक गहलोत खेमे की रणनीति बेहद सोची-समझी है।
हरीश चौधरी को संगठन से दूर करना।
समर्थकों को कमजोर करना।
जाट समुदाय में नया नेतृत्व खड़ा करना।
सचिन पायलट पर अप्रत्यक्ष दबाव डालना।
यह पूरी रणनीति Ashok Gehlot vs Harish Choudhary Politics को और ज्यादा तीखा बना रही है।
सचिन पायलट और हरीश चौधरी का रिश्ता केवल राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भरोसे और समर्थन पर टिका हुआ है।
हरीश चौधरी ने कई मौकों पर खुलकर पायलट का समर्थन किया।
2020 के गहलोत–पायलट विवाद के दौरान भी चौधरी पायलट खेमे का अहम हिस्सा रहे।
पायलट का मानना है कि कांग्रेस में बदलाव ज़रूरी है और हरीश चौधरी जैसे नेताओं को आगे आना चाहिए।
इसी वजह से Ashok Gehlot vs Harish Choudhary Politics को गहलोत बनाम पायलट संघर्ष का नया रूप माना जा रहा है।
यह संघर्ष केवल दो नेताओं तक सीमित नहीं है बल्कि इसका असर पूरी कांग्रेस पार्टी पर पड़ रहा है।
संगठन पर असर – गुटबाजी से कांग्रेस का ढांचा कमजोर।
वोट बैंक का बिखराव – जाट और गुर्जर वोट बैंक में खींचतान।
चुनावी रणनीति में बाधा – गहलोत और पायलट की खींचतान से तैयारी प्रभावित।
युवाओं में असंतोष – पायलट और चौधरी के हाशिए पर जाने से कार्यकर्ताओं की नाराज़गी।
विशेषज्ञ मानते हैं कि Ashok Gehlot vs Harish Choudhary Politics कांग्रेस के लिए दोधारी तलवार है।
अगर गहलोत सफल होते हैं और हरीश चौधरी कमजोर पड़ते हैं, तो पायलट गुट की ताकत घटेगी।
लेकिन इससे जाट वोट बैंक नाराज़ हो सकता है और कांग्रेस को चुनावों में नुकसान झेलना पड़ सकता है।
वहीं अगर चौधरी और पायलट का गठजोड़ और मजबूत होता है, तो यह गहलोत के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा।
स्पष्ट है कि राजस्थान कांग्रेस में चल रहा यह संघर्ष केवल गहलोत और पायलट तक सीमित नहीं है। बल्कि यह अब Ashok Gehlot vs Harish Choudhary Politics बन चुका है, जिसके केंद्र में जाट वोट बैंक और कांग्रेस का भविष्य है।
हरीश चौधरी को कमजोर करना दरअसल सचिन पायलट पर अप्रत्यक्ष हमला है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या गहलोत अपनी रणनीति में सफल होते हैं या पायलट–चौधरी गठजोड़ कांग्रेस में नई ताकत के रूप में उभरता है।